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कहानी : रमानाथ मिश्र क ‘हेमा दीदी’


पूर्णियाँ जाई वाली बस में अपन सीट लग सामान सब सरिया के, पत्नी के सीट पर बैसा के अपने पान खाई ले नीचां उतरलहुं।
पान खा के जहिना एलहुं त पत्नी एकटा टेम्पो दिस इशारा करते कहलनि,”वैह अहांक हेमा दीदी। वैह छथि ।” हम अकचकेलहुं, मुदा पत्नीक इशाराक अनुगमन करैत टेम्पो पर नजरि पड़ल त ठीके हेमा दीदी छलीह । हेमा दीदी लग एकटा सोलह-सत्रह बरखक युवक सामान सब के टेम्पो से उतारि के व्यवस्थित क ‘ रहल छल। हमर बस के खुजै में पन्द्रह- बीस मिनट देरी छल, हम हेमा दीदी के टेम्पो दिस बढ़लहुं।आ कि पत्नीक सहज व्यग्रतापूर्ण स्वर कान में पड़ल, जल्दीए चल आएब, गाड़ी ने खुजि जाए।। हम हाथ से पत्नी के इशारा करैत झटैक के हेमा दीदी लग पहुंचलहुं। हम पैर छू के जहिना प्रणाम केलियनि कि हेमा दीदी अचानक हड़बड़ेलीह। किछु क्षण अवाक रहैत एक्के बेर हर्ष आ विस्मय से चकित हमरा चिन्हैत बजलीह, ” मन्नू रौ!”

आई अट्ठारह बरख पर हेमा दीदी से भेंट भेल छल। ऐ बीच हम मात्र तीन या चारि बेर ममा गाम गेल हैब। एक्को बेर हेमा दीदी से भेंट नै भ सकल। नौकरी में एलाक बाद सं फुर्सति कत ‘।
हमर ममाक पितियौत भाई, सुरेश बाबू, हमर सुरेश ममा। हमर ममा सब के सम्पत्तिक बंटवारा ल’ के नने के समय से झगड़ा चल अबै छलैन। सालों कोर्ट-कचहरी केलाक बाद कानूनी रूपें त मामला खत्म भ गेल छलनि मुदा हमरा जहिया से मोन अछि जावत ममा सब के जूईत चलैत रहलनि आपसी वैमनस्यता बनले रहलनि। बाद में हमर ममियौत भाई सब स्वत: झगड़ा झंझट छोड़ि सुरेश ममाक बेटा सब सं मेल- जोल क’ लेलनि , से बिशुनजी, हमर छोटका ममाक बेटा से ज्ञात भेल। (आगू क कथा अगिला बुध कए—-क्रमशः)

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(ESAMAAD)