पूर्णियाँ जाई वाली बस में अपन सीट लग सामान सब सरिया के, पत्नी के सीट पर बैसा के अपने पान खाई ले नीचां उतरलहुं।
पान खा के जहिना एलहुं त पत्नी एकटा टेम्पो दिस इशारा करते कहलनि,”वैह अहांक हेमा दीदी। वैह छथि ।” हम अकचकेलहुं, मुदा पत्नीक इशाराक अनुगमन करैत टेम्पो पर नजरि पड़ल त ठीके हेमा दीदी छलीह । हेमा दीदी लग एकटा सोलह-सत्रह बरखक युवक सामान सब के टेम्पो से उतारि के व्यवस्थित क ‘ रहल छल। हमर बस के खुजै में पन्द्रह- बीस मिनट देरी छल, हम हेमा दीदी के टेम्पो दिस बढ़लहुं।आ कि पत्नीक सहज व्यग्रतापूर्ण स्वर कान में पड़ल, जल्दीए चल आएब, गाड़ी ने खुजि जाए।। हम हाथ से पत्नी के इशारा करैत झटैक के हेमा दीदी लग पहुंचलहुं। हम पैर छू के जहिना प्रणाम केलियनि कि हेमा दीदी अचानक हड़बड़ेलीह। किछु क्षण अवाक रहैत एक्के बेर हर्ष आ विस्मय से चकित हमरा चिन्हैत बजलीह, ” मन्नू रौ!”
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