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कविता : मतिनाथ मिश्रक प्रलय काल


कोश कोशक दूर बाधक- बीच कोशिक बाढ़ि देखल, प्रकृति जनु छलि आवि सूतलि रजत अम्बर ओढ़ि निश्चल। दूर क्षितिजक बिन्दु चुम्बन- हेतु जलनिधि आवि पहुंचल शिखर सन मैनाक शैलक ‌‌ कतहुं छल घर मात्र जागल। धान भासल गेह भासल लोक वेदो कतहु भागल नाव पर विद्रूप जनक ई करुण हाहाकार सूनल। सटल मायक देह में […]

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(ESAMAAD)